विलियम स्टायरान ने कभी कहा था कि ‘एक अच्छी किताब के कुछ पन्ने आपको बिना पढ़े ही छोड़ देना चाहिए ताकि जब आप दुखी हों तो उसे पढ़ कर आपको सुकुन प्राप्त हो सके’। यह बातें उनके दौर में और आज से 4-5 वर्ष पूर्व तक काफी सटीक था लेकिन आज के दौर में यदि आपने किसी पुस्तक को पढ़ कर छोड़ दिया है तो
छूटा ही रह जाता है। क्यूंकि हम किताबों से परहेज करने लगे हैं लेकिन मोबाइल को रिचार्ज और चार्ज करना नहीं भूलते।
कहने का यथार्थ यह कि इन्टरनेट के इस क्रांति युग में किताबों को हम भूलते जा रहे हैं। अब पढ़ना मोबाइल तक सिमटकर रह गया है। आज जहां जायें घर हो या बाहर सभी जगह चौबीसों घंटे हाथ में मोबाइल लिए इन्टरनेट पर चैट करते या वीडियो देखते मिल जाएंगे। उन्हें यदि पुस्तक मेले में कह दिया जाए कि जाओ वहां से घुमकर आ जाओ तो पुस्तक मेले तो नहीं जाएंगे लेकिन वे किसी अच्छे माल में जरूर जाना चाहते हैं जहाँ उन्हें अपनी मन पसंद खाने-पीने और पहनने की वस्तु मिल जाये।
वक्त में जिस प्रकार तेजी से परिवर्तन हो रहा है, इससे पुस्तक पर संकट मंडराने लगा है। ऐसा एक दिन न आ जाए कि किताब गुजरे जमाने की चीज रहकर न रह जाए। नेट और गूगल ने सब कुछ बदलकर रख दिया है जिससे उनका पुस्तकों के प्रति मोह कम होने लगा है। उन्हें समझना होगा कि किताबें जेब में रखा एक बगीचा होता है जो हर पल एक नई सुंगध के साथ फूल देती है। आप उस सुगंध से वंचित मत होइए, इस बात का ध्यान रखें। इसी मद्देनजर पुस्तक प्रेमियों की भावना का सम्मान करने के लिए एवं उनकी निजता का ख्याल रखते हुए यूनेस्को ने विश्व पुस्तक तथा स्वामित्व (कापीराइट) दिवस का औपचारिक शुभारंभ 23 अप्रैल 1995 को की थी। इसी दिन ही विश्व कापीराइट दिवस भी मनाया जाता है। जिसका उद्देश्य कापीराइट मूल्यों को बढ़ावा देना है ताकि किसी के ज्ञान पर कोई और अपना अधिकार ना जमा सके। इसकी नींव तो 1923 में ही स्पेन में पुस्तक विक्रेताओं द्वारा प्रसिद्ध लेखक मीगुयेल डी सरवेन्टीस को सम्मानित करने हेतु आयोजन के समय ही रख दी गई थी। उनका देहांत भी 23 अप्रैल को ही हुआ था।
यह दिन साहित्यिक क्षेत्र में अत्यधिक मायने रखता है क्यूंकि यह दिन साहित्य के क्षेत्र से जुड़ी अनेक विभूतियों का जन्म या निधन का दिन है। उदाहरणस्वरूप 23 अप्रैल को सरवेन्टीस, शेक्सपीयर तथा गारसिलआसो डी लाव्हेगा, मारिसे ड्रयन, के. लक्तनेस, ब्लेडीमीर नोबोकोव्ह, जोसेफ प्ला तथा मैन्युएल सेजीया के जन्म/निधन के दिन के रूप में जाना जाता है। विलियम शेक्सपीयर का तो जन्म तथा निधन की तिथि भी 23 अप्रैल ही थी। अतः इस दिवस का आयोजन करने हेतु 23 अप्रैल का चयन एक निश्चित विचारधारा के अंतर्गत किया गया।
किताबें कितना सुकून देती हैं, यह कोई किसी पुस्तक प्रेमी से पूछे। लोगों के दिलों में पुस्तकों के प्रति प्रेम जागृत करने का यह दिवस तो एक जरिया है। इसी के तहत लेखकों, पाठकों, आलोचकों, प्रकाशकों और संपादकों का एक साथ सम्मान किया जाता है जो अपने ज्ञान, अपने अनुभवों को पुस्तकों के जरिए लोगों तक पहुंचाते हैं।
पुस्तक ही एक व्यक्ति, एक लेखक की पहचान होती है। लेखक टोनी मोरिसन ने कहा था कि ‘‘कोई ऐसी पुस्तक जो आप दिल से पढ़ना चाहते हैं, लेकिन जो लिखी न गई हो, तो आपको चाहिए कि आप ही इसे जरूर लिखें।’’ इसलिए जब दिल करे लिखने के लिए बैठ जाएं। अपने आप में संकोच न करें कि गलत होगा या सही। निरंतर अभ्यास से अच्छे लेख, अच्छी किताबें लिखी जा सकती है।
आज के दौर में बच्चें हों या युवा पुस्तक का मतलब पाठ्यपुस्तक ही समझते हैं। जबकि पाठ्यपुस्तक के अलावा भी पुस्तकों की बड़ी दुनिया होती है। यदि आपने अपना पाठ्यक्रम या पढ़ाई पूरी कर लिया है तो आपके लिए हजारों किताबें आपकी राह देख रही है। आइए, अपने पसंद की पुस्तकों का चयन कीजिए और मोबाइल में समय बर्बाद करने से अच्छा है कि पुस्तकों को अपना दोस्त बनाइए।
यह याद रखें कि बचपन में स्कूल से आरंभ हुई पढ़ाई जीवन के अंत तक चलती है। पुस्तकें इसांन की सबसे अच्छी दोस्त होती है। जो जिंदगी के हर मोड़ पर साथ निभाती है। पुस्तकें हमारे जीवन में हमारा मार्गदर्शन करती हैं। अगर व्यक्ति के जीवन में पुस्तक ना हो तो व्यक्ति के मस्तिष्क का विकास पूर्ण रुप से नहीं हो सकता। कई शोध इस बात की पुष्टि करती है कि मोबाइल के कारण लोगों की जिज्ञासु प्रवृत्ति और याद करने की क्षमता भी खत्म होती जा रही है। बच्चों में यह तो विशेष समस्या है। पुस्तकें बच्चों में अध्ययन की प्रवृत्ति, जिज्ञासु प्रवृत्ति, सहेजकर रखने की प्रवृत्ति और संस्काररोपित करती हैं। नेट पर लगातार बैठने से लोगों की आँखों और मस्तिष्क पर भी बुरा असर पड़ रहा है। आज इंटरनेट, मोबाइल फोन, कम्प्यूटर के कारण हम पुस्तकों से कटते जा रहें हैं। शीघ्र सब मिल जाने की चाहत में पुस्तकों से मिलने वाले सुकून को हम स्वयं ही खत्म करते जा रहे हैं।
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि किताबें आपके व्यक्तित्व को निखारती ही नहीं बल्कि यह आपके स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद है। इसकी वैज्ञानिकों ने भी पुष्टि की है। शोध से पता चला है जो शौक के लिए नाचते और पढ़ते उनका स्वास्थ्य ऐसा न करने वाले लोगों की तुलना में 33 प्रतिशत ज्यादा बेहतर रहता है। टीवी देखने और कंप्यूटर पर काम करने की तुलना में पढ़ाई करने वालों का दिमाग ज्यादा तेज होता है।
किताब न पढ़ने वाले व्यक्ति की तुलना में किताबें पढ़ने वाले आदमी का दिमाग हमेशा जवां रहता है। किताब पढ़ने वाले व्यक्ति को कभी अल्जाइमर नहीं होती। अल्जाइमर एक प्रकार की दिमागी बीमारी है। इसके कारण व्यक्ति की याददाश्त कमजोर हो जाती है। भले आप बात माने या न माने लेकिन तनाव के समय आप अपने सबसे प्रिय किताब को पढ़िए, शोध का दावा है कि आपके तनाव कम हो जाएंगे। क्योंकि किताबें व्यक्ति के तनाव के हार्मोन यानी कार्टिसोल के स्तर को कम करती हैं, जिससे तनाव दूर रहता है। फायदों की सूची में नींद भी शामिल हैं जो लगभग दुनिया भर में लोगों की परेशानी है। रात में देर तक टीवी देखने और कंप्यूटर पर काम करने से आपकी नींद उड़ सकती है, लेकिन रात में सोने से पहले किताब पढ़ने से आपको अच्छी नींद आ सकती है। इसलिए रात को सोने से पहले किताब पढ़ना न भूलें।
अब अंतरजाल यानी इंटरनेट के जरिए आनलाइन किताबें पढी जा सकती है। आजकल डिजीटल किताबों की ओर लोगों का ध्यान गया है। ई-किताब यानी इलेक्ट्रानिक किताब, जिसका मतलब है डिजिटल रूप में किताब। ई-किताबें कागज की बजाय डिजिटल संचिका के रूप में होती हैं, जिन्हें कंप्यूटर, मोबाइल और इसी तरह के अन्य डिजिटल यंत्रों पर पढ़ा जा सकता है। इन्हें इंटरनेट पर प्रकाशित भी किया जा सकता है। साथ ही इसका प्रचार-प्रसार भी आसानी से किया जाता है। इसकी फाइलें पीडीएफ यानी पोर्टेबल डाक्यूमेंट फार्मेट में सर्वाधिक प्रचलित है।
यह बता दें कि गूगल ने 6 दिसंबर, 2010 से इलेक्ट्रानिक बुक स्टोर की दुनिया में कदम रखा था। गूगल पर पढ़ी जा सकने वाली मुफ्त किताबों की वजह से विवाद भी हुआ, लेकिन गूगल का कहना है कि इससे ज्यादा लोग किताबें पढ़ सकेंगे। हमें विश्वास है कि यह दुनिया का सबसे बड़ा ई-बुक पुस्तकालय होगा। मुफ्त पढ़ी जा सकने वाली किताबों को मिलाकर इनकी कुल संख्या तीस लाख से ज्यादा हो चुकी है।
स्कूल और कालेज में पुस्तक लाइब्रेरी जरूर है मगर उसमें जाने का समय विद्यार्थी के पास नहीं है। कक्षा में विषयों के पीरियड अवश्य होते हैं खेलकूद का भी समय होता है मगर पुस्तक पढ़ने अथवा पुस्तकालय का कोई पीरियड नहीं होता। अब तो गली-मोहल्ले में भी कोई वाचनालय या पुस्तकालय नजर नहीं आता ताकि वहां शांति से बैठकर पढ़ा जाये। यदि कहीं ऐसी जगह भूल से मिल भी जाये तो उनका मोबाइल उसे पढ़ने नहीं देता। उसकी नजरें मोबाइल पर ही टिकी रहती है।
बच्चों को पहली कक्षा से ही स्मार्ट क्लास में पढ़ाने का चलन चल निकला है। पाठकों और किताबों की घटती संख्या वास्तव में चिंताजनक है। ऊपर से डिजीटल किताबें भी कागजी किताबों को कम करती नजर आती है। ऐसे हालात में आज पुस्तकों के प्रति खत्म हो रहे आकर्षण के प्रति गंभीर होकर सोचने और इस दिशा में सार्थक कदम उठाने की जरुरत है।
-निर्भय कर्ण
आरजेड-11ए, सांई बाबा एन्कलेव,
गली संख्या-6, नजफगढ़,
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Bilkul sahi baat ki hai aapne, kintu internet ki wajah si aaj log kitabein kindle par hi padh rahe hai. Kagaji kitaab ki sankhya kum ho rahi hai par E books ki khapat ab jyada ho rahi hai.
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