दुर्गा प्रसाद दास ने इन ब्लॉग पोस्ट को एक किताब की शक्ल दे दी है। उन्होंने सभी ब्लॉग पोस्ट संस्कृत भाषा को लेकर लिखी है। ये किताब पाठक को संस्कृत और संस्कृत के ग्रंथों की एक खूबसूरत दुनिया में ले जाती है।
संस्कृत देश की सबसे प्राचीन, समृद्ध और खूबसूरत भाषा है, लेकिन सदियों से विदेशी हमलावरों के कारण इस भाषा को काफी नुकसान झेलना पड़ा। मुस्लिम हमलावर हो या अंग्रेज इन सबों ने भारत के सामाजिक, सांस्कृतिक और पारंपरिक ताने-बाने को खत्म करने की हरसंभव कोशिश की।
भारत का लगभग 99 प्रतिशत प्राचीन ज्ञान संस्कृत के ग्रंथों में संरक्षित है। आदि काल से संस्कृत ग्रंथ, वेद, पुराण, विज्ञान, चिकित्सा, व्याकरण और भाष्य संस्कृत में होने के कारण ये बुद्धिजीवियों की भाषा थी, लेकिन आज संस्कृत को लोग सिर्फ धर्म-कांड की भाषा समझते हैं। जबकि संस्कृत में बड़ी संख्या में गैर-धार्मिक ग्रंथ भी हैं, जिसके बारे में आम लोगों को जानकारी ही नहीं है।
दरअसल में भारत पर राज करने वाले इन विदेशी शासकों ने या तो देश के विशाल पुस्तक, साहित्य संग्रहों को नष्ट कर दिया या फिर अपनी शिक्षा प्रणाली लागू कर इसे हाशिए पर डाल दिया। इससे नई पीढ़ी को भारत के प्राचीन और विशाल ज्ञान भंडार से परिचित होने का मौका ही नहीं मिला।
ऐसे में दुर्गा प्रसाद दास की The Beauty of Sanskrit Language and Texts. पाठकों में संस्कृत के प्रति एक नया दृष्टिकोण पैदा करेगा। यह संस्कृत के बारे में अब तक चल रहे मिथकों को दूर करने में सहायक होगा। वैसे ए से जेड तक वर्णमाला के छ्ब्बीस अक्षरों के अनुरूप छब्बीस लेख लिखना किसी बड़े टास्क से कम नहीं था, लेकिन दुर्गा प्रसाद दास जी ने इसे बखुबी पूरा किया है।
एयरफोर्स के जवान से ब्लॉगर, लेखक बने दुर्गा प्रसाद दास जी ने अंग्रेजी में संस्कृत के बारे में शानदार किताब लिखी है। उन्होंने संस्कृत भाषा की खूबसूरती को जिस बेहतरीन ढंग से लिखी है वो काबिले-तारीफ है। बचपन से ही संस्कृत के प्रति लगाव रखने वाले दुर्गा प्रसाद दास ने अपने ई-बुक की शुरुआत अमरकोश के इस श्लोक से की है-
स्य ज्ञानदयासिंधोरगाधस्यानघा गुणा:
सेव्यतामक्षयो धीरा: स श्रिये चामृताय च
इसका अर्थ है- हे ज्ञानियों! उनकी सेवा करो जो ज्ञान और करुणा के सागर हैं और शुद्ध हैं, ताकि वास्तविक धन और शाश्वत जीवन का अमृत प्राप्त कर सको।
उन्होंने पुस्तक का अंत विश्व कल्याण और शांति की प्रार्थना के साथ की है-
ॐ द्यौ: शान्तिरतिररक्षँ शान्ति:,
पृथ्वीशान्तिराप:शान्तिरोषधय:शान्ति:।
वनस्पिय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:,
सवँ शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति:, सा मा शान्तिरेधध ॥
ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति: ॥
लेखक इसके पहले भी सात किताबें लिख चुके हैं-
1. Life Sutras
2. Parenting Sutras
3. Songs of a Mystic
4. Experiments in Short Fictions
5. The Miscellany of an Indian Yogi
6. Understanding Bhagavad Gita
7. My Village My Country
इस पुस्तक के अलावा दुर्गा प्रसाद दास के और बेहतरीन लेख आप उनके ब्लॉग
https://durgadash.com में पढ़ सकते हैं। आप पुस्तक को डाउनलोड कर फ्री में पढ़ भी सकते हैं-
पुस्तक पढ़ने के लिए लिंक क्लिक करें-
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